(१) तुम नीचे गिर के देखो कोई उठाने नहीं आएगा और जरा उड़कर देखो, सब आएंगे गिराने ।
(२) दवा में कोई खुशी नहीं है और खुशी जैसी कोई दवा नहीं है ।
(३) जब तक किसी का मन खुद कैकई जैसा न हो तब तक कोई भी मंथरा उसके कान नहीं भर सकती ।
(४) हमारा स्वभाव: जो ले कर (कर्म) जाना है उसे छोड़ रहे हैं और जो (धन) यहीं रह जाना है उसे जोड़ रहे हैं ।
(५) मन के राज़ पहुँच गए गैरों तक, मशवरा तो अपनों से किया था ।
(६) पुण्य छप्पर फाड़ कर देता है और पाप थप्पड़ मार कर लेता है ।
(७) समय बहाकर ले जाता है नाम और निशान; कोई 'हम' में रह जाता है औऱ कोई 'अहम' में ।
▪ साभार- बृजमोहन शर्मा व स्वदेश बाला शर्मा, रोहिणी, दिल्ली ११००८५▪
🥦 वृक्ष काटने आये थे कुछ लोग मेरे उद्यान में, "अभी धूप बहुत तेज है" कहकर बैठे हैं उसकी छाँव में । 🥦
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